पर ग़लतफ़हमी में इंसान जहाँ-तहाँ होता है।
आस की बन्धन टूट जाती है,
कच्चे धागे कहीं छूट जाती है।
कशमकश बन जाती है ज़िन्दगी,
न जी पाती है न मर पाती है।
आग़ाज़ ब मुश्किल होकर, अंजाम तक जाता है।
अच्छा खासा रिश्ता, मोती सा बिखर जाता है।
तड़प और बेबसी होती है
न ग़म न खुशी होती है।
दिल को यकीन होता नही
दिमाग़ की बेबसी होती है।
रोशनी पड़ती है ग़लतफ़हमी पे, तब तक किस्सा बन जाता है
इंसान इस आड़ में, बेबसी का हिस्सा बन जाता है।
ग़लतफ़हमी से यकीन का सफर आसान होता है।
पर ग़लतफ़हमी में इंसान जहाँ-तहाँ होता है।
Creation by Nilofar Farooqui Tauseef
Instagram Id - writernilofar
0 Comments:
Post a Comment