बड़ी खामोशी से, वो इश्क़ जताता था।
उलझी ज़ुल्फें जो रुख़सारों पे, आ जाती थी कभी,
सँवार लो ज़ुल्फ़ को, वो इशारो में बताता था।
उसपे तो कभी इश्क़ का, हक़ न जताया हमने,
पर न जाने क्यों, मुझपे वो अपना हक जताता था।
छुप जाते थे जो कभी, दीवारों की आड़ में हम,
क़ैद परिंदे की तरह, वो फड़फड़ाता था।
एक सहारे की शायद तलाश थी उसको भी
जब भी देखता था मुझे, लड़खड़ाता था।
बहुत हिम्मत करके जो कर दिया इज़हारे इश्क़ हमने
ज़बान इनकार करता रहा, पर निगाहों से वो जताता था।
मालूम थी हमें, अपने इश्क़ की इंतहा 'नीलोफ़र'
वो हिन्दू, मैं मुस्लिम, शायद इसलिए ज़माने से छुपाता था।
Creation by Nilofar Farooqui Tauseef
Instagram Id - writernilofar
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