जाते तो अच्छा होता
फिर हर सुबह फूल बनके
खिल जाते तो अच्छा होता
यूँ तो रात मैं बैचैन सुमसाम हर रास्ता
बस तुम सुबह से एक किरन
मांग लाते तो अच्छा होता
दिल की मासुनियत पे ये दर्द का पहरा क्यूँ ?
तुम अश्क बनके बहे जाते तो अच्छा होता
तन्हाइयो मैं बैठे थे हाथो मैं लिए जाम
तुम याद बनकर चले आते तो अच्छा होता
नहीं भूले कुछ बेवफा से फ़साने
चलो तुम हमको ही भूल जाते तो अच्छा होता
केसी बेवफाई मिली मेरी चाहत को
हम खुद ही बेवफा हो जाते तो अच्छा होता
लिखते थे कागज़ पे हाले दिल
तुम फिर से नज़्म बनके
चले आते तो अच्छा होता..
Creation by Hemisha Shah
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Awesome
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