खुशबूदार पिटारा था !!
वो थी कोमल मोम की सी,
तन जलता एक शरारा था !!
वो एक मुशारा था जिसको,
ग़ालिब ने शेरो में उतारा था !!
उसको थी नफरत मुझसे,
मैंने उसके आशिक़ को चौराहे पे मारा था !!
था मौसम आँधीं - सावन का,
घड़ी-घड़ी बरसाते थी !!
भीग रहा था शहर लेकिन,
हर तरफ मेरी उसकी ही बातें थी !!
आच्छादित रत्नो से नौ नौ,
वो चंचल सौख कुंवारी थी !!
लाती थी वो घर में रोटी,
माँ बाप को गरीबी की बिमारी थी !!
न ना सुनने की आदत मेरी,
गुरूर उसमे भी बहुत सारा था !!
वो थी लड़की शहर की,
मैं गलियों का आवारा था !!
थी शिद्दत लव्जो से उसके,
क्या कसूर मेरा था आखिर !!
दिल के बदले दर्द मिला,
समझा उसने मुझको ही काफिर !!
था कोलाहल भीषण सा,
या सुन्न सपाट सन्नाटा था !!
हंस रही थी महफ़िल मुझपे,
जब उसने चांटा मारा था !!
ठुकरा कर ये दिल कांच का,
बड़ी जोर से पत्थर मारा था !!
टूट गया सम्मोहन मेरा,
ख़तम खेल प्यार अब सारा था !!
बीता गुरु शुक्र और रविवार भी,
मन में मेरे एक अय्यारी थी !!
वो सो रही थी चैन से रातो में,
मुझे नींद बिलकुल नी आरी थी !!
था लाल सुर्ख चेहरा उसका,
मैंने तो सिर्फ अपना इश्क़ इक़रारा था !!
वो बोली ख्वाबों में आकर,
तुमने ही मेरे आशिक़ को चौराहे पे मारा था !!
थी साफ सड़के और गालियां खाली,
शायद ये मातम की तैयारी थी !!
करने हिसाब बराबरी का,
मेरे यारो की टोली अब आरही थी !!
भरी दोपहरी जेठ की,
घर में वो अबला नारी थी !!
एक थप्पड़ की चोट से,
बदली उसकी दुनिया अब सारी थी !!
करदी मिट्टी इज्जत, मर्यादा,
खींचा आँचल फाड़ी साडी थी !!
जो बोला बीच में मेरे उसकी,
छाती में तलवार उतारी थी !!
वो बोली फिर भैया भैया,
अब मैं किसी को नहीं तड़पाऊंगी !!
बन कर अब मैं कभी,
किसी की कोख मैं नहीं आउंगी !!
देख रहा था मौन मोहल्ला,
मन में सबके एक दुशासन था !!
वो लिपटी कपड़ो में सिमटी,
दुष्कर्मी सारा ये शासन था !!
सात महल, दो दुर्ग एक कोठी
ठाट, बाठ, आठ गाडी थी !!
मैं था बेटा नगर पंच का,
सियासत घर में बड़ी भारी थी !!
क्या दोषी क्या आरोपी,
में पकड़ में ही कब आया था !!
जब बीते 24 घंटे,
तब लड़की को अस्पताल पहुंचाया था !!
फिर बैठी एक जांच कमेटी,
जगा प्रशासन सारा था !!
की गयी घटना की घोर निंदा,
आखिर इतना कर्त्तव्य तो हमारा था !!
बनकर मुद्दा राजनीति का,
अब ये संसद में आया था !!
करके चर्चा पक्ष - विपक्ष ने,
अच्छा समय गवाया था !!
बनाया कैम्पेन बलात्कार पे,
अब डिबेट का त्योहार आया था !!
केंडल मार्च में बहा पसीना,
टीवी-अखबार ने खूब कमाया था !!
लगा के तस्वीर चौराहे पे,
उसको बहुत सजाया था !!
माँ बाप रो रहे थे घर पे,
उनको किसी ने नहीं बुलाया था !!
उठा मुद्दा जब जोर शोर से,
पुलिस का चेहरा तमतमाया था !!
तब जाके कहीं फिर गलती से,
मेरे घर वारंट आया था !!
चिल्ला चिल्लाकर कोर्टरूम में,
वकीलों ने मुझको मौत से बचाया था !!
छूट कर वापस सात साल बाद,
मैं वापस शहर में आया था !!
ना होगा कानून सशक्त जब तक,
कोई मेरा क्या बिगाड़ पायेगा !!
कभी हैदराबाद तो कभी प्रयाग में,
ये पाप दोहराया जायेगा !!
ना लाज, शर्म ना पश्चाताप,
दुष्टों को पापो का मर्म नहीं !!
ये मृत्यु हैं भारत तेरी,
एक लड़की का दुष्कर्म नहीं !!
Creation by Ananya Rai Parashar
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Thanks shabdcharit ❤️🙏💯
ReplyDeleteबेहतरीन अनन्या जी
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