सब नाते वफ़ा के मैं तोड़ दूँ
मान लूं हूँ गलत मैं, और तू सही
नाम तेरा लबों से मैं छोड़ दूं
जहां बातें प्रेम की अक्सर होती रही
अब ना आएंगे उन गलियों में सनम
हो गए हैं हम रुखसत अपनी रूह से
अब ना खोएंगे तेरी बातों में हम
किस्सा तेरा मेरा फंसी मझदार सा
ना निकल पाएं ना डूबना चाहें
कोई तुमसा मिले जो हाथ थाम ले
तुम्हारे सिवा ना किसी को चाहें
फुरकत की तपिश में जलते रहे
तस्कीन इश्क़ में मिली ही नही
नायाब मोती गिरते मेरे चश्म से
तन्हाइयों में यादें सताती रहीं
कोई क़ासिद बने मेरे प्रेम का
जा खत मेरा तुम्हे जाकर के दे
खो चुकी है जो मेरी तबस्सुम कहीं
कोई वापस उसे लाकर के दे।
Creation by Dewansh Sharma
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