लोभ से तृष्णा जब बढ़ने लगी !!
इच्छायें नवीन रूप गढ़ने लगी !!
होकर क्षुब्ध सी आत्मा मरने लगी !!
मनुज की मति इन्द्रियाँ हरने लगी !!
मानव पर नाश तब छाने लगा !!
प्रकृति के विपरीत जब नर आने लगा !!
रोग, महामारी जैसे होने लगे !!
सृष्टि से मनुष्य सब खोने लगे !!
अश्रुओ से विलाप जग करने लगा !!
देख मृत्यु निकट हृदय में धीरज मरने लगा !!
भीड़ में कौरवो की, पांडव कहीं खोने लगा !!
ये प्रलय ही है, देखो शिव तांडव भी होने लगा !!
ज्ञान विज्ञान सब पीछे छूट जाने लगा !!
ईश्वर का ध्यान सबको अब आने लगा !!
देख पाप स्वयं के अब क्यों रोने लगा !!
सत्य को देख, सत्य सकल रूप होने लगा !!
Creation by Ananya Rai Parashar
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Bhut hi khubsurat
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