शुभ स्वच्छ आवरण,मोह का करो हरण।
ब्रह्म की सुता हो ज्ञान गंगा में नहाती हो।।
हंस पर सवार कर स्फटिक हार।
मातु तार झनकार,वीणावादिनी कहती हो।।
बुद्धि की आगार,शांति,सद्भाव,प्यार।
मातु कर दे प्रसार,प्रेमधार बरसाती हो।।
तू है जननी महान,मैं हूँ बालक अजान।
देवी तू दयानिधान,दिव्यदृष्टि दर्शाती हो।।
ज्ञान,सूर्य,तेज़,पुंज,ज्योति की प्रकाशिनि हो।
श्वेत पद्मसिनी विहासिनी,माँ भारती।।
सत्य,स्नेह,सुचिता की सुधा धार बन।
सींचती सुबुद्धि को संवारती, माँ भारती।।
विनय,विवेक,बक,विद्या की विकासिनी हो।
विजय,विशाल,विश्व व्यापिनी माँ भारती।।
विषय,विषाद औ विमोह की विनाशिनी हो।
वंदना तुम्हारी वरदायिनी माँ भारती।।
शिखर पाठक
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